बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
सात
राम ने सागरदत्त को जा जगाया।
"सागरदत्त! तुम्हें अपना वचन याद है?"
"कौन-सा वचन आर्य?" सागरदत्त कुछ सोचता रहा फिर हंसा, "वचन याद हो या न हो, आप आदेश दें। पालन होगा।"
"तुमने कहा था कि आदेश मिलने पर अपनी नौकाओं में पत्थर भर कर उन्हें सागर में डुबो दोगे...!"
"कहिए आर्य कहां डूबोनी हैं।"
राम ने विस्मय से देखा, सागरदत्त और उसके साथियों के चेहरे पर चिंता और अप्रसन्नता की एक भी रेखा नहीं उभरी थी। किस मिट्टी के बने हैं ये लोग...राम हंस पड़े, "नहीं। नावें डुबोनी नहीं हैं : किंतु काम उतने ही जोखिम का है।"
सागरदत्त भी हंसा, "हम जानते हैं भद्र! आप हमें नहीं डुबोएंगे। और जहां तक जोखिम का प्रश्न है, वह तो हमारे जीवन के साथ ही लगा हुआ है,...आप आदेश दें।"
"तुम देख रहे हो सागरदत्त कि यहां एक छोटा-सा जल-युद्ध चल रहा है। हम नहीं जानते कि वे कौन हैं और क्या चाहते हैं। अनुमान है कि वे द्रुमकुल्य नामक जल-दस्यु हैं।" राम बोले, "तुम लोगों को अपनी नौकाएं सैनिकों से भरकर उन जलपोतों की पिछली ओर ले जानी हैं वहां से हम आक्रमण करेंगे। वाणों, अग्निवाणों तथा उल्काओं की वर्षा होगी। नौकाएं नष्ट हो सकती हैं। प्राण जा सकते हैं। बोलो तैयार हो?..."
सागरदत्त हंसा, "लगता है, अभी आपको हमारी धातु की परख नहीं हुई।" वह अपने साथियों की ओर मुड़ा, "नौकाएं जल में उतार दो।"
राम ने लक्ष्मण की ओर देखा, "अगस्त्य आश्रम से आए उन धनुर्धारियों को ले जाओ, जो नौका-युद्ध में प्रशिक्षित हैं।"
राम ने अपनी नौकाओं को छह टुकड़ियों में बांटा। दो टुकड़ियों का नेतृत्व उन्होंने स्वयं संभाला और दो-दो लक्ष्मण और नील को सौंप दीं। एक-एक टुकड़ी को एक-एक जलपोत पर आक्रमण करना था। आक्रमण का पहला संकेत स्वयं राम देने वाले थे।
उस अंधकार में, अथाह सागर में निःशब्द यात्रा करनी थी। फिर भी राम को द्रुमकुल्यों के जलपोतों के पीछे पहुंचने में कोई असुविधा नहीं हुई। सागरदत्त के साथ जितने साहसी और दक्ष नाविक थे, जल-दस्यु उतने ही असावधान थे। वे सागर-तट पर अपने अस्त्र फेंकने में इतने व्यस्त थे और जल में खड़े पोतों की सुरक्षा को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने जलपोतों की पिछली ओर अपना कोई संतरी भी नहीं रखा था।
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